Wednesday 25 May 2011

क्योंकी...आज भी....

कौन गुजरा यहां से की,
कदमों से फूलोंकी मेहक उमड़ी.
जिनकी नजरों की कश्ती में,
आज भी यादों की फुअरें  उडी.

आज भी धुप है उस जहाँ मैं,
जहा कभी बुँदे मदहोश होती थी,
ये शाम आज भी उतनी ही खुशनुमा है,
क्योंकी कल जलाये हुए दिए आज ही जल रहे है.

दिन के धुए मैं बेहोश है,
माजुर पेड़ों की हरी डालिया,
तितलियोंकी फडफडाहट गूंजी पड़ी है,
क्योंकी आज भी हवा का रुख वही है.

बारिश बरसने को बेक़रार है,
जमीं को कोई मेहरम राज़ नहीं,
सियाही भी आस लगाये बैठी है,
क्योंकी लिखावट आज भी बाक़ी है.

अनछुए  रास्ते भी हमसफ़र लगते है,
जब दौड़ते है उनकी तलाश मैं,
करवटे तो आज भी बदली है,
क्योंकी सुबह का इंतेज़ार रात भी कर रही है.

लेहारों का उफान जोरों पे है,
समंदर का रुझान भी बदला  नहीं है,
किनारों पे राहें ताँक रही है,
क्योंकी आज भी मुसाफिर सफ़र के लिए तैयार है.

नादान दिखती है वो हसीं,
झुरियों के आगे बढ़ने की कोशिश मैं,
मुरझुआहट तो चेहरे का आभास है,
क्योंकी आज भी उन सिलवटों का समां है.

बादल आज भी घने है,
धड़कने आज भी तेज़ है,
साँसों मैं आज भी घबराहट है,
क्योंकी आज भी उन अल्फाजों के मायने है...



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